सनातन संस्कृति के प्रमुख केंद्र हरिद्वार जिले के सुल्तानपुर क्षेत्र में बन रही एक विशाल मस्जिद को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। संत समाज ने मस्जिद निर्माण को लेकर नाराजगी जताई है और इस विषय को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के संज्ञान में लाया गया है।
संतों और सामाजिक संगठनों का आरोप है कि मस्जिद का निर्माण बिना जिला प्रशासन की विधिक अनुमति के किया जा रहा है, जो कि सुप्रीम कोर्ट के 2009 और 2016 के निर्देशों का उल्लंघन है।
मस्जिद निर्माण को लेकर क्या है विवाद?
हरिद्वार के सुल्तानपुर कस्बे में बीते कई महीनों से एक 250 फुट ऊंची मीनारों वाली मस्जिद का निर्माण किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर इसे उत्तराखंड की सबसे बड़ी मस्जिद बताया जा रहा है।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, इस निर्माण के लिए मस्जिद इंतजामिया कमेटी ने न तो जिला प्रशासन से अनुमति ली, और न ही भूमि दस्तावेज या फंडिंग स्रोतों की जानकारी दी है।
संत समाज की नाराजगी:
हरिद्वार के अखाड़ों, आश्रमों और मठों में प्रवास करने वाले संतों ने इस निर्माण पर कड़ी आपत्ति जताई है।
विश्व हिन्दू परिषद (VHP) के प्रवक्ता पंकज चौहान ने कहा:
“इस मस्जिद के निर्माण को लेकर संदेह है कि इसके पीछे किसका आर्थिक सहयोग है। हमारी मांग है कि सरकार इसकी फंडिंग की भी जांच कराए। संत समाज चिंतित है और राज्य सरकार तक बात पहुंचा दी गई है।”
प्रशासन की प्रतिक्रिया:
हरिद्वार के जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने जानकारी दी है कि:
“सुल्तानपुर में निर्माणाधीन मस्जिद का कार्य फिलहाल रोक दिया गया है। मस्जिद कमेटी को भूमि और निर्माण से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए नोटिस जारी किया जा रहा है।”
नियमों का उल्लंघन या लापरवाही?
सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश हैं कि किसी भी धार्मिक स्थल का निर्माण जिला कलेक्टर की अनुमति के बिना नहीं हो सकता। इसके लिए भूमि के वैध दस्तावेज, निर्माण समिति के विवरण और बैंक खातों की जानकारी देना आवश्यक है।
नैनीताल हाईकोर्ट को ऐसे मामलों में निगरानी की जिम्मेदारी दी गई है। राज्य सरकार द्वारा हर जिले में समिति गठन और अतिक्रमण हटाओ अभियान भी इसी दिशा में सक्रिय हैं।
निष्कर्ष:
धार्मिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील हरिद्वार जिले में बिना अनुमति का निर्माण प्रशासन की बड़ी चूक मानी जा रही है। हालांकि, राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने इस मामले में तत्काल कार्रवाई करते हुए निर्माण पर रोक लगाई है और आगे की जांच के निर्देश दिए हैं।
अब देखना होगा कि इस विवाद का समाधान संवैधानिक और सामंजस्यपूर्ण तरीके से कैसे होता है।