उत्तराखंड में मदरसा शिक्षा व्यवस्था को बदलने की दिशा में धामी सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक, 2025 मंगलवार को विधानसभा पटल पर पेश किया गया। इस विधेयक पर बुधवार को बहस की संभावना है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि अभी तक राज्य में केवल मुस्लिम समुदाय के लिए मदरसा शिक्षा बोर्ड था, लेकिन वर्ष 2026-27 से इसे समाप्त कर उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण (USAME) की स्थापना की जाएगी। इस प्राधिकरण के दायरे में सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, मुस्लिम और पारसी समुदायों के शैक्षणिक संस्थान भी आएंगे।
धामी ने कहा कि सरकार की मंशा सभी अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ने की है। विपक्ष ने इस कदम को वोट बैंक की राजनीति बताया, जबकि भाजपा ने इसे शिक्षा में पारदर्शिता और गुणवत्ता बढ़ाने का प्रयास करार दिया।
राज्य में वर्तमान में 452 पंजीकृत मदरसे हैं, जबकि 500 से अधिक मदरसे बिना अनुमति के संचालित हो रहे थे। इनमें से 237 को हाल ही में बंद कर दिया गया। जांच में मदरसों में केंद्रीय छात्रवृत्ति और मिड डे मील योजना में अनियमितताएं भी सामने आई थीं।
विधेयक के मुख्य प्रावधान
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प्राधिकरण का गठन : एक अध्यक्ष और 11 सदस्य, जिन्हें राज्य सरकार नामित करेगी।
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मान्यता की अनिवार्यता : मदरसों को 2026-27 से प्राधिकरण से पुनः मान्यता लेनी होगी।
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बोर्ड का अंत : 1 जुलाई 2026 से उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2016 और अरबी-फारसी मदरसा मान्यता विनियमावली, 2019 निरस्त हो जाएंगे।
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मान्यता की शर्तें : संस्था किसी अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित होनी चाहिए, उसका प्रबंधन पंजीकृत निकाय (सोसायटी, न्यास, कंपनी) के पास हो और गैर-अल्पसंख्यक छात्रों की संख्या 15% से अधिक न हो।
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पाठ्यक्रम व परीक्षाएं : अल्पसंख्यक धर्मों और भाषाओं से जुड़े विषयों का पाठ्यक्रम विकसित होगा और संस्थानों को परीक्षा व प्रमाणन में मार्गदर्शन मिलेगा।
सरकार का मानना है कि इस कदम से अल्पसंख्यक शिक्षा व्यवस्था अधिक पारदर्शी और संगठित होगी। यह पहली बार है जब सभी अल्पसंख्यक समुदायों को समान शिक्षा ढांचे के तहत लाने की कोशिश की जा रही है।