उत्तराखंड सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर भले ही बड़े-बड़े दावे कर रही हो, लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है। कुमाऊं मंडल में डॉक्टरों की भारी कमी है। यहां 1039 स्वीकृत पदों में से 432 रिक्त हैं। कई सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) पूरी तरह डॉक्टरविहीन हैं।
अल्मोड़ा – बाल रोग विशेषज्ञ तक नहीं
अल्मोड़ा जिले की 9 सीएचसी में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 47 पद खाली हैं। किसी भी केंद्र में महिला और बाल रोग विशेषज्ञ उपलब्ध नहीं हैं। भिकियासैंण सीएचसी पूरी तरह संविदा चिकित्सकों पर निर्भर है।
बागेश्वर – 9 पीएचसी पूरी तरह डॉक्टरविहीन
बागेश्वर में डॉक्टरों के 107 पद स्वीकृत, लेकिन 31 रिक्त हैं। जिले की 9 पीएचसी पूरी तरह बिना डॉक्टर के चल रही हैं। जिला अस्पताल में 30 में से 7 पद खाली हैं।
नैनीताल – बीडी पांडे अस्पताल में कमी
नैनीताल जिले में 340 पदों में से 87 रिक्त हैं। बीडी पांडे अस्पताल में ही 14 पद खाली हैं, जिनमें 2 बाल रोग विशेषज्ञ भी शामिल हैं।
पिथौरागढ़ – महिलाओं का स्वास्थ्य दो विशेषज्ञों पर निर्भर
पिथौरागढ़ जिले के 174 पदों में से 85 रिक्त हैं। 12 डॉक्टर पीजी करने गए और 10 लंबे समय से गैरहाजिर हैं। पूरी महिला आबादी के इलाज के लिए सिर्फ 2 महिला रोग विशेषज्ञ उपलब्ध हैं।
चंपावत – 50% से ज्यादा पद खाली
चंपावत जिले में डॉक्टरों के 111 पद स्वीकृत, लेकिन केवल 60 कार्यरत हैं। यानी 51 पद रिक्त। जिला अस्पताल में 36 में से 11 पद खाली और लोहाघाट उपजिला अस्पताल में 21 में से 10 पद खाली हैं।
ऊधमसिंह नगर – आईसीयू अधर में
ऊधमसिंह नगर जिले में 226 पदों में से 131 रिक्त हैं। जिला अस्पताल का आईसीयू और कई महत्वपूर्ण इकाइयां डॉक्टरों की कमी से अधर में हैं। यहां 33 पीएचसी में से 18 पूरी तरह डॉक्टरविहीन हैं।
सरकार के दावे बनाम हकीकत
सरकार हाईकोर्ट में दावा करती है कि राज्य में डॉक्टरों की कमी नहीं है। लेकिन अस्पतालों की खाली कुर्सियां और इलाज के लिए भटकते मरीज इस दावे की पोल खोल रहे हैं।
विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी के कारण महिला स्वास्थ्य सेवाएं, बच्चों का इलाज और आपातकालीन सुविधाएं बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं।