उत्तराखंड में इस बार सर्दी का सितम कुछ ज्यादा ही देखने को मिल सकता है।
भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने चेतावनी दी है कि दिसंबर 2025 से फरवरी 2026 के बीच देश के पहाड़ी राज्यों — जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड — में अत्यधिक ठंड और शीतलहर पड़ने की संभावना है।
विभाग के अनुसार, इस अवधि में औसत तापमान सामान्य से 0.5 से 1 डिग्री सेल्सियस तक कम रह सकता है।
❄️ पिछले कई वर्षों में सबसे कठोर सर्दी संभव
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बार की ठंड पिछले कई वर्षों की तुलना में अधिक कठोर साबित हो सकती है।
इस साल उत्तराखंड में मानसून सामान्य से अधिक सक्रिय रहा, जिससे राज्य के कई हिस्सों में बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाएं आईं।
अब ठंड का यह नया दौर हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र पर और गहरा प्रभाव डाल सकता है।
🌧️ मानसून की मार और जलवायु अस्थिरता
जून से अक्टूबर तक चली बारिश ने उत्तराखंड के कई हिस्सों में तबाही मचाई —
धराली (उत्तरकाशी), थराली (चमोली) और छेनागाड़ (रुद्रप्रयाग) जैसे क्षेत्रों में भारी भूस्खलन और बाढ़ ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया।
विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) अब अपने प्रत्यक्ष प्रभाव दिखा रहा है —
पहाड़ों में सितंबर-अक्टूबर में ही बर्फबारी शुरू हो गई है और कई स्थानों पर फूल समय से पहले खिलने लगे हैं, जो पारिस्थितिकी असंतुलन का संकेत है।
🌿 विशेषज्ञों की चेतावनी
पर्यावरण विशेषज्ञ देव राघवेंद्र बद्री ने कहा,
“मौसम चक्र में यह गड़बड़ी भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है।
अत्यधिक ठंड न केवल इंसानों बल्कि वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के लिए भी खतरा है।
इससे रक्तचाप, हृदय रोग और फसलों की वृद्धि पर विपरीत असर पड़ सकता है।”
वहीं पर्यावरणविद हरीश गुंसाई और अनुसूया प्रसाद मलासी ने कहा कि
अनियोजित निर्माण कार्य, सुरंग परियोजनाएं और बेतरतीब विकास हिमालय के पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ रहे हैं।
उनके अनुसार, मिट्टी का क्षरण और भूस्खलन की घटनाओं में तेजी इसका परिणाम है।
🏔️ हिमालयी क्षेत्र जलवायु असंतुलन के केंद्र में
रिपोर्टों के अनुसार, अब भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं हर मानसून में आम हो चुकी हैं।
बढ़ती औसत वर्षा, तापमान में असामान्य उतार-चढ़ाव, और बर्फबारी के समय में बदलाव — ये सभी संकेत हैं कि
हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र तेजी से अस्थिर हो रहा है।
🐾 जंगली जीवन और फसलों पर असर
विशेषज्ञों का कहना है कि अत्यधिक ठंड से कई जंगली प्रजातियों के प्रवास पैटर्न (Migration Patterns) बदल जाएंगे।
साथ ही खेतों में फसलों की अंकुरण दर और फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया पर भी नकारात्मक असर होगा।
🧊 शीतलहर और घने कोहरे की संभावना
आईएमडी का अनुमान है कि दिसंबर 2025 से फरवरी 2026 के बीच उत्तर भारत में शीतलहर के कई चरण देखने को मिलेंगे।
विशेष रूप से जनवरी और फरवरी में तापमान में तीव्र गिरावट संभव है।
जहां अधिक वर्षा और बर्फबारी होगी, वहां घना कोहरा और कड़ाके की ठंड जनजीवन को प्रभावित कर सकती है।
🌍 जलवायु परिवर्तन की दिशा
जलवायु विशेषज्ञों ने बताया कि
2024 में भारत ने रिकॉर्ड गर्मी झेली,
2025 में अत्यधिक वर्षा,
और अब 2026 में तीव्र ठंड की संभावना —
ये सब “मौसमीय अस्थिरता (Climatic Instability)” के संकेत हैं।
🌱 समाधान की राह — स्थायी विकास
पर्यावरणविदों ने सुझाव दिया है कि अब समय आ गया है कि सरकारें
स्थायी विकास (Sustainable Development) को प्राथमिकता दें।
हिमालयी क्षेत्रों में अनियंत्रित निर्माण, सड़कों का चौड़ीकरण और जलविद्युत परियोजनाओं पर वैज्ञानिक मूल्यांकन आवश्यक है।
साथ ही वन संरक्षण, जलस्रोत पुनर्जीवन और हरित क्षेत्र विस्तार की दिशा में ठोस नीतियाँ बनानी होंगी।
⚠️ निष्कर्ष
उत्तराखंड और अन्य हिमालयी राज्यों के लिए यह सर्दी केवल ठंड नहीं,
बल्कि जलवायु परिवर्तन की गंभीर चेतावनी लेकर आ रही है।
यदि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ जारी रही, तो आने वाले वर्षों में न केवल मौसम बल्कि
मानव जीवन की स्थिरता भी खतरे में पड़ सकती है।