उत्तराखंड में मानव और वन्यजीवों के बीच टकराव की घटनाएं लगातार चिंताजनक होती जा रही हैं। जंगलों के पास बसे क्षेत्रों में बाघ और तेंदुओं के हमले आम होते जा रहे हैं। खासकर वर्ष 2024 के पहले छह महीनों में बाघ तेंदुओं की तुलना में अधिक घातक साबित हुए हैं। वन विभाग के आंकड़े इस बढ़ते खतरे की गंभीरता को दर्शाते हैं।
एक दशक के आंकड़े बताते हैं भयावह स्थिति
वर्ष 2014 से 2024 के बीच उत्तराखंड में बाघों और तेंदुओं के हमलों में सैकड़ों लोगों की जान चली गई।
-
बाघों के हमलों में: 68 मौतें और 83 लोग घायल
-
तेंदुओं के हमलों में: 214 मौतें और 1006 लोग घायल
2024 के पहले छह महीने में बाघ ज्यादा खतरनाक
जनवरी से जून 2024 के बीच मानव-वन्यजीव संघर्ष के जो आंकड़े सामने आए हैं, वे गंभीर स्थिति की ओर संकेत करते हैं:
-
बाघ के हमले में: 10 मौतें, 3 घायल
-
तेंदुए के हमले में: 6 मौतें, 25 घायल
-
कुल हानि: 25 मौतें और 136 घायल
रेस्क्यू ऑपरेशन में तेजी, आठ बाघ और 44 तेंदुए पकड़े गए
संघर्ष को रोकने के लिए वन विभाग ने रेस्क्यू अभियान तेज किया है।
1 जनवरी 2024 से 30 जून 2025 के बीच:
-
8 बाघ रेस्क्यू, जिनमें से 7 को रेस्क्यू सेंटर भेजा गया, एक को जंगल में छोड़ा गया।
-
44 तेंदुए पकड़े, जिनमें से 19 रेस्क्यू सेंटर भेजे गए।
रेस्क्यू संबंधी कार्रवाई और परमिशनें
-
बाघों के लिए: 25 ऑपरेशन की अनुमति
-
तेंदुओं के लिए: 124 बार पिंजरा लगाने व ट्रैंक्यूलाइज की अनुमति
-
5 मामलों में मारने की अनुमति
-
4 मामलों में उपचार की अनुमति दी गई
वन विभाग के प्रयास
वन विभाग के अपर प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) विवेक पांडे के अनुसार:
-
संवेदनशील क्षेत्रों में QRT (क्विक रेस्पॉन्स टीम) तैनात
-
जनजागरूकता अभियान चलाए जा रहे
-
प्राकृतिक आवासों का सुदृढ़ीकरण
-
रेस्क्यू और ट्रैंक्यूलाइज उपकरणों की व्यवस्था की जा रही है
विशेषज्ञों की चेतावनी और सुझाव
वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि:
-
आबादी का बढ़ना और जंगलों में मानवीय दखल से वन्यजीवों के आवास प्रभावित हो रहे हैं
-
बाघों की संख्या में वृद्धि और व्यवहार में बदलाव चिंताजनक है
समाधान की राह: सामूहिक प्रयास जरूरी
उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में वन्यजीवों और इंसानों के बीच संतुलन बनाना बड़ी चुनौती है। इसके लिए केवल वन विभाग ही नहीं, बल्कि स्थानीय प्रशासन, आम जनता और पर्यावरण विशेषज्ञों को भी साथ आना होगा।